खम्हार रोपण

खम्हार रोपण :

खम्हार का रोपण किसानों के लिये खेती के साथ आय का एक अच्छा स्रोत हो सकता है। किसान खेत में मेढ़ में अथवा खाली पड़ी भूमि में खम्हार का रोपण कर आर्थिक रूप से संपन्न बन सकता है। खम्हाार वृक्षारोपण से लगभग 10 वर्ष पश्चात अच्छी आय प्राप्त हो सकती है। खम्हार के रोपण से प्रदेश के किसानों की गरीबी दूर होगी तथा खेती लाभ का सौदा बन सकेगी।

खम्हार (Gmelina-arborea) :

खम्हार, सागौन की तरह ही Verbenaceae कुल (family) का पौधा है जिसकी ऊँचाई मध्यम होती है इसे क्षेत्रीय भाषा में खम्हेर, गम्हारी, गम्हार, सिवन आदि नाम से भी जाना जाता है तथा यह प्रदेश के सभी कृषि जलवायु क्षेत्रों में उगाया जा सकता है। इसकी काष्ठ सागौन की काष्ठ के बाद फर्नीचर के लिये उपयुक्त इमारती लकड़ी मानी जाती है। वर्तमान में 1 मीटर से अधिक गोलाई वाले लट्ठे की कीमत औसतन 15-20 हजार रूपये प्रति घनमीटर है। खम्हार का वृक्ष 15 से 20वें वर्ष में पातन योग्य (लगभग 3 फुट गोलाई) हो जाता है, किन्तु अच्छी मृदा तथा सिंचित स्थिति में 11वें वर्ष में पातन योग्य वृक्ष तैयार हो सकते हैं।

मध्य प्रदेश के जिलों में कृषि जलवायु क्षेत्र एवं मिट्टी के प्रकार के आधार पर खम्हार रोपण की अनुशंसा :

मध्यप्रदेश के जिलों में कृषि जलवायु क्षेत्रों में खम्हार रोपण हेतु उपयुक्त मिट्टी -

क्र. कृषि जलवायु क्षेत्र जिलों के नाम खम्‍हार रोपण हेतु उपयुक्‍त मृदा
1. Northern Hill region adjoining Chhattisgarh State (छत्‍तीसगढ़ से लगा पहाड़ी क्षेत्र) मंडला, डिण्‍डौरी, सीधी, शहडोल, अनूपपुर, सिंगरौली काली, पीली, बालूमय, लाल भूरीमय, मुरूम
2. Kymore plateau & Satpura hill region  (कैमोर, पठार एवं सतपुड़ा की पहाडियां) सिवनी, कटनी, पन्‍ना, सतना, रीवा, उमरिया काली, भूरी, लाल, मुरूम, रेतीली
3. Vindhya plateau (विंध्‍य का पठार) सीहोर, भोपाल, रायसेन, विदिशा, सागर, दमोह, राजगढ़, गुना, अशोकनगर काली, गहरे लाल रंग, रेतीली दोमट, मुरूम
4. Central Narmada Valley (नर्मदा घाटी) नरसिंहपुर, होशंगाबाद, हरदा, जबलपुर काली, रेतीली, भुरभुरी, लाल मुरूम
5. Chhattisgarh plain (बैनगंगा घाटी, छत्‍तीसगढ़ मैदान - बालाघाट) बालाघाट काली, रेतीली लाल, काली दोमट, लाल मुरूम
6. Gird Region (गिर्द-ग्‍वालियर क्षेत्र) ग्‍वालियर, भिंड, शिवपुरी, मुरैना, श्‍योपुर काली, लाल पथरीली, मुरूम
7. Bundelkhand Region (बुंदेलखण्‍ड क्षेत्र) दतिया, छतरपुर, टीकमगढ़ काली, लाल, रेतीली, मुरूम
8. Satpura plateau (सतपुड़ा पठार) छिंदवाड़ा एवं बैतूल काली, लाल, मुरूम, लाल कंकड़ पत्‍थर युक्‍त
9. Malwa plateau (मालवा पठार) बड़वानी, धार, इंदौर, देवास, उज्‍जैन, शाजापुर, रतलाम, मंदसौर, नीमच लाल मुरूम, पथरीली, काली, लाल, पीली, गहरी भूरी, मुरूम, रेतीली भुरभुरी
10. Nimar plains (निमाड़ पठार) खण्‍डवा, बुरहानपुर, खरगौन काली, लाल, मुरूम, लाल कंकड़ युक्‍त सख्‍त मुरूम, लाल पीली दोमट
11. Jhabua hills (झाबुआ पहाडियां) झाबुआ, अलीराजपुर काली, रेतीली, लाल

खम्हार को जलोढ़ मिट्टी में तथा पानी भरने वाली जगह पर नहीं लगाना चाहिये। खेत की मेड़ों पर खम्हार की बहुत अच्छी वृद्धि होती है। रोपण में अच्छी वृद्धि के लिये सिंचाई करना आवश्यक है तथा गड्ढे में उपजाऊ मिट्टी के साथ खाद एवं दीमक रोधी पाउडर आवश्यक मात्रा में डालना चाहिये।

रोपण विधि:

  • पौधा तैयारी : खम्हार का बीज अप्रैल के दूसरे सप्ता‍ह में उपलब्ध होता है एवं गूदे सहित ताजे बीजों की संख्या 800-900 प्रति किग्रा. होती है तथा सूखे बीजों की संख्या 1400-1500 प्रति किग्रा. होती है। पौधा तैयार करने हेतु ताजे बीज को गर्म पानी में 24 घंटे रखने के पश्चा‍त सीधे पोलीथिन में बुआई की जा सकती है। जुलाई के प्रथम सप्ताह में इस विधि से रोपण योग्य पौधे (लगभग 30 सेमी. ऊँचाई) प्राप्त हो जायेंगे।
  • रोपण : सामान्‍यतया इसे वर्षऋतु के प्रारंभ में लगाया जाता है किन्‍तु यदि सिंचाई के साधन उपलब्‍ध हों तो फरवरी-मार्च माह में पौधे लगाना अधिक अच्‍छा है। पोलीथिन में उगे हुए तथा 3 से 4 माह के पौधे 30×30×30 सेमी. के गड्ढे खोदकर नीचे दिये गये अंतराल पर लगाना चाहिये। माह जनवरी-फरवरी में गड्ढे करके मिट्टी बाहर निकाल देना चाहिये तथा लगाते समय पुन: मिट्टी भरकर तथा पौधे को अच्‍छी तरह दबाकर लागना चाहिये। पौधों की जगह सीधे बीज रोपण भी किया जा सकता है। किंतु सीधे बीज रोपण के लिये गड्ढों की मिट्टी सतह से 5 स 10 से.मी. ऊपर उठा देनी चाहिये, तत्‍पश्‍चात ऊपर उठी हुयी मिट्टी में बीज बोना चाहिये। गड्ढों में 3 : 1 के अनुपात में मिट्टी एवं गोबर खाद तथा 20 ग्राम बी.एच.सी. पाउडर या अन्‍य उपलब्‍ध दीमक रोधी पाउडर या तरल दीमक नाशक दवा डाली जानी चाहिये।

अंतराल :

3 मीटर ×3 मीटर अथवा 3 मीटर ×2 मीटर का अंतराल उपयुक्‍त है। 3 मीटर ×2 मीटर का अंतराल रखने पर 6वें वर्ष में एक विरलन करने से 3 मीटर ×4 मीटर का अंतराल प्राप्‍त होगा। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 3 मीटर रखी जानी चाहिये जिससे जुताई हेतु ट्रेक्‍टर चलाने में आसानी होगी।

मेढ़ों पर 2 मीटर के अंतराल पर एक अथवा दो पंक्तियों में पौधे लगायें जा सकते हैं। किसान, सकरी मेढ़ों में भी इसे लगा सकते हैं, चूंकि इसमें छत्र छोटा होता है अत: इससे खेत की फसल को नुकसान नहीं होगा तथा किसानों को काफी अधिक आय प्राप्‍त हो सकती है। यह एक गहरी तथा सीधी नीचे जड़ विकसित करने वाला वृक्ष होने से इसकी वृद्धि मेढ़ों पर बहुत अच्‍छी रहती है।

खाद :

प्रत्‍येक पौधे को 75 ग्राम यूरिया, 150 ग्राम पोटाश म्‍यूरेट और 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्‍फेट 5 बार देना चाहिये। खाद देने के बाद सिंचाई अवश्‍य करना चाहिये। साथ में मिट्टी की गुड़ाई भी कर देना चाहिये। पहले वर्ष में जैविक खाद भी देना चाहिये। दूसरे वर्ष में खाद की मात्रा दुगुनी कर देना चाहिये।

अधो रोपण (Intercropping):

खम्‍हार की पंक्तियों के बीच में 3 मीअर की चौड़ाई में हल्‍दी का अधो रोपण अत्‍यंत उपयुक्‍त होगा और इससे प्रतिवर्ष अतिरिक्‍त आय प्राप्‍त हो सकती है। सिंचाई की व्‍यवस्‍था होने पर हल्‍दी का रोपण माह मई में किया जाता है तथा खम्‍हार के वृक्षों के अंतिम पातन तक हल्‍दी का रोपण किया जा सकता है। हल्‍दी लगाने से प्रतिवर्ष एक अच्‍छी आय प्राप्‍त होगी और किसानों को अंतिम पातन से प्राप्‍त आय तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा। अधो रोपण के लिये स्‍थानीय जलवायु, मृदा व बाजार की मांग के अनुसार अन्‍य उपयुक्‍त फसल ली जा सकती है।

विरलन से आय :

यदि 3×2 मीटर के अंतराल पर रोपण किया गया हो तो 6वें वर्ष एक विरलन करना चाहिये और पंक्ति में एक पौधा छोड़कर दूसरे पौधे की कटाई कर देनी चाहिये जिससे अंतराल 3 मीटर ×4 मीटर हो जायेगा। विरलन के पश्‍चात्‍ प्रति हेक्‍टेयर लगभग 800 पेड़ों से अतिरिक्‍त आय प्राप्‍त होगी।

अंतिम पातन :

सामान्‍यतया निर्धारित विधि से खाद एवं सिंचाई देने से 11वें वर्ष में अच्‍छी मृदा वाले सिंचित रोपण से खम्‍हार पौधे की छाती गोलाई 1 मीटर (3 फुट) तक आ सकती है, जिससे प्रति पेड़ से लगभग 0.3 घनमीटर लकड़ी प्राप्‍त होगी। अधिक गोलाई के लकड़ी प्राप्‍त करने के लिये 15-20 वर्ष का पातन चक्र भी रखा जा सकता है। खराब मृदा पर असिंचित रोपण में पातन योग्‍य गोलाई 15-20 वर्षों में प्राप्‍त हो सकती है।

उपज :

सामान्‍यतया 3 मीटर ×3 मीटर अंतराल प्रति हेक्‍टेयर में लगभग 1000 पौधों से 250-300 घ.मी. काष्‍ठ प्राप्‍त होगी, बशर्तें अच्‍छी खाद, सिंचाई, मिट्टी की गुड़ाई, कीटाणुनाशक एवं सुरक्षा का पर्याप्‍त ध्‍यान समय एवं मांग के अनुसार रखा गया हो।

सावधानियाँ :

  • इसमें पत्‍तीभक्षक कीट (Defoliator), लकड़ी छेदक, जड़ सड़न आदि रोग लगते हैं। नये रोपणों में 0.1 से 0.2 प्रतिशत फेनिट्रोथियान 50 ई.सी. या इन्‍डो सल्‍फान 35 सी.सी. पानी से मिलाकर स्‍प्रेयर से छिड़काव करना चाहिये।
  • इसकी नयी कोपलों को बन्‍दरों से बहुत नुकसान होता है, इससे पौधों की वृद्धि रूक जाती है, अत: बन्‍दरों से प्रारंभिक वर्षों में बचाव करना अति आवश्‍यक है।
  • जल भराव वाले क्षेत्रों में रोपण नहीं करना चाहिये।

संपर्क :

क्र. अनुसंधान एवं विस्‍तार वृत्‍त मुख्‍यालय वृत्‍त के अंतर्गत सम्मिलित जिले दूरभाष क्रमांक
कार्यालय फैक्‍स मोबाइल
1. बैतूल बैतूल, होशंगाबाद, हरदा 07141-230475 230475 91-9424796457
2. भोपाल भोपाल, विदिशा, रायसेन, राजगढ़, सीहोर 0755-2674316 - 91-9424796463
3. ग्‍वालियर ग्‍वालियर, भिंड, शिवपुरी, दतिया, मुरैना, गुना, श्‍योपुर, अशोकनगर 0751-2427962 2422962 91-9424791726
4. इंदौर इंदौर, देवास 0731-2461292 2461292 91-9424792376
5. जबलपुर जबलपुर, मंडला, कटनी, डिंडोरी 0761-2668554 2668554 91-9425819300
6. झाबुआ झाबुआ, धार, अलीराजपुर 07392-243837 243837 91-9425087450
7. खंडवा खंडवा, खरगौन, बुरहानपुर, बडवानी 0733-2223265 2223265 91-9425109125
8. रतलाम रतलाम, मंदसौर, नीमच, उज्‍जैन, शाजापुर 07412-235131 235131 91-9424794962
9. रीवा रीवा, शहडोल, सतना, उमरिया, अनूपपुर, सीधी, सिंगरौली 07662-256493 240339 91-9424796484
10. सागर सागर, दमोह, छतरपुर, टीकमगढ़, पन्‍ना 07582-236278 236278 91-9826117929
11. सिवनी सिवनी, छिंदवाडा, नरसिंहपुर, बालाघाट 07692-221395 221395 91-9424790033

अन्य वेबसाइट
संपर्क करें
  • कार्यालय प्रधान मुख्य वन संरक्षक,
    मध्यप्रदेश, वन भवन, तुलसी नगर, लिंक रोड नंबर-2, भोपाल- 462003
  • दूरभाष : +91 (0755) 2674240, 2524132
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